"यहां जश्न चल रहा था, लोग नाच रहे थे और कश्मीर में मेरे घर पर सब कुछ बंद पड़ा था. मेरे मां-बाप की कोई ख़बर
नहीं मिल रही थी. आप बताइए कि इस जश्न से मैं ख़ुद को कैसे जोड़ लूं."
लेह की एक दुकान में काम करने वाले एक कश्मीरी नौजवान ने ये बात कही और फिर आस-पास इस तरह देखा कि कोई इस बातचीत को सुन न ले.लेह के मुख्य बाज़ार में सड़क के दोनों ओर कम से कम सत्तर फ़ीसदी दुकानें कश्मीरियों की हैं. इनमें से इक्का-दुक्का दुकानें उन्होंने ख़रीदी हैं, बाक़ी बौद्ध मालिकों से किराए पर ली हुई हैं.
बहुत से कश्मीरी नौजवान यहां बौद्ध मालिकों की दुकानों में भी काम करते हैं.
लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्ज़ा मिलने के बाद यहां के कश्मीरी दुकानदारों और कामगारों के लिए एक अजब भावनात्मक दुविधा पैदा हो गई है.
जो समृद्ध कश्मीरी हैं उन्होंने लेह में करोड़ों का निवेश किया है. जो कामगार हैं वे भी यहां खाना खिलाकर, कालीन, शॉल और दुपट्टे बेचकर रोज़ी चलाते हैं.
इस तरह यहां के विकास की नई उम्मीदों के भागीदार वे भी हैं. लेकिन उनका मन कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटाए जाने के ख़िलाफ़ भी बैठा जाता है.
लेह के मुख्य बाज़ार में कुछ कश्मीरी दुकानदारों और कामगारों ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर हमसे बात की.
लेह में लोग लंबे समय से केंद्रशासित प्रदेश (यूटी) की मांग कर रहे थे. इस आंदोलन में यहां के धार्मिक संगठन लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन (एलबीए) की बड़ी भूमिका रही है. इसलिए बौद्धों की अधिकांश आबादी के लिए यूटी एक भावनात्मक मसला रहा है.
लेकिन लेह के कुछ कश्मीरी दुकानदारों को लगता है कि ये फ़ैसला अपने मौजूदा स्वरूप में लेह वासियों के लिए भी फ़ायदे का सौदा नहीं है.
एक कश्मीरी दुकानदार ने कहा, "लेह के लोगों के लिए यूटी एक दूर के सपने की तरह था जो अचानक पूरा हो गया. इसलिए अब लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि इसे कैसे देखें. 370 का विशेष दर्ज़ा भी छिन गया है और लोगों में कंफ़्यूजन भी बहुत है. इसके बुरे नतीजों के बारे में बहुत लोगों को पता नहीं है."
एक अन्य कश्मीरी दुकानदार ने कहा कि लद्दाख के लोग यूटी इसलिए चाहते थे ताकि उन्हें कश्मीर जाकर किसी चीज़ की इजाज़त न लेनी पड़े और कश्मीरी नेताओं से कुछ न मांगना पड़े. इस मांग का मुख्य मक़सद केंद्र के सीधे शासन में आना था. लेकिन अनुच्छेद 370 के फ़ायदे वो भी नहीं खोना चाहते थे.
लेह में टैक्सी कारोबार यहां के स्थानीय लोगों के पास ही है और वह उनकी आमदनी का बड़ा ज़रिया है.
एक कश्मीरी दुकानदार ने बताया, "टैक्सी बिज़नेस में लेह वासियों का ऐसा एकाधिकार है कि कारगिल वालों को भी लेह में टैक्सी चलाने की इजाज़त नहीं है. यहां टैक्सी के तौर पर सिर्फ़ जेके-10 की गाड़ियां ही चलती है."
उन्होंने कहा कि विशेष दर्ज़ा हटने के बाद अगर यहां ओला और उबर जैसी कंपनियां आ जाएंगी तो उनके सस्ते दामों का यहां के स्थानीय टैक्सी मालिक मुक़ाबला नहीं कर सकेंगे.
एक अन्य कश्मीरी ने यही बात होटलों के संबंध में कही.
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