इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में
लगभग एक करोड़ लोग रहते हैं. दुनिया के किसी दूसरे शहर की तरह लोग काम पर
जाते हैं, घर आते हैं और वापस काम पर जाते हैं, हवा और पानी जैसी आम
समस्याओं से दो चार होते हैं.
लेकिन इस शहर में रहने वालों के पैरों तले ज़मीन खिसक रही है. और वो भी हर साल 25 सेंटीमीटर की दर से. बीते दस सालों में ये शहर ढाई मीटर ज़मीन में समा गया है लेकिन दलदली ज़मीन पर बसे इस शहर पर निर्माण कार्य लगातार ज़ारी है. दलदली ज़मीन पर बसे इस शहर के नीचे से 13 नदियां निकलती हैं और दूसरी ओर से जावा सागर दिन-रात बिना रुके हुए शहर की ओर पानी फेंकता रहता है. बाढ़ का आलम तो ये है कि शहर का काफ़ी हिस्सा अक्सर पानी में डूबा रहता है. इसके साथ-साथ पानी में शहर के कई हिस्से समाते जा रहे हैं.
इंडोनेशिया के एक प्रतिष्ठित तकनीक संस्थान बैंडंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलोजी में 20 सालों से जकार्ता की ज़मीन में होते बदलावों का अध्ययन कर रहे हैरी एंड्रेस इसे एक बेहद गंभीर बात बताते हैं.
वह कहते हैं, "जकार्ता के ज़मीन में डूब जाने का मसला हंसने का विषय नहीं है. अगर हम अपने आंकड़ों को देखें तो 2050 तक उत्तरी जकार्ता का 95 फ़ीसदी हिस्सा डूब जाएगा."
बीते दस सालों में उत्तरी जकार्ता ढाई मीटर तक डूब चुका है और 1.5 सेंटीमीटर की औसत दर लगातार डूब रहा है.
जकार्ता के डूबने की दर दुनिया के तमाम तटीय शहरों के डूबने की दर से दुगने से भी ज़्यादा है.
उत्तरी जकार्ता में इस समस्या का आसानी से देखा जा सकता है.
मुआरा बारू ज़िले में एक पूरी सरकारी इमारत खाली पड़ी हुई है. कभी इस इमारत में एक फिशिंग कंपनी चला करती थी लेकिन अब इस इमारत का केवल ऊपरी हिस्सा इस्तेमाल किया जा सकता है.
इस इमारत का ग्राउंड फ़्लोर बाढ़ के दौरान पानी से भर गया था लेकिन बाढ़ ख़त्म होने के बाद ज़मीन का स्तर ऊपर आ गया जिससे ये पानी ग्राउंड फ़्लोर में ही फंसकर रह गया.
जकार्ता शहर में लोगों ने ऐसी तमाम इमारतों को छोड़ दिया है क्योंकि उन्हें बार-बार मरम्मत कराने की ज़रूरत पड़ती थी.
इस जगह से पांच मिनट की दूरी पर एक मछली बाज़ार मौजूद है.
मुआरा बारू में रहने वाले रिद्वान बीबीसी को बताते हैं, "फुटपाथ पर चलना लहरों की सवारी करने जैसा है, लहरें आती रहती हैं, लोग गिर सकते हैं."
इस मछली बाज़ार से सामान ख़रीदने आने वालों को तमाम समस्याओं से दो चार होना होता है.
रिद्वान कहते हैं, "साल दर साल, ज़मीन डूबती जा रही है."
उत्तरी जकार्ता ऐतिहासिक रूप से बंदरगाह वाला शहर रहा है और आज भी यहां तेनजंग प्रायक इंडोनेशिया का सबसे व्यस्त बंदरगाह है.
इसी स्थान से किलिवंग नदी जावा सागर में समाती हैं. 17वीं शताब्दी में डच उपनिवेशवादियों ने इसी वजह से जकार्ता को अपना ठिकाना बनाया था.
वर्तमान में उत्तरी जकार्ता में लगभग 18 लाख लोग रहते हैं जिनमें कमज़ोर होता बंदरगाहों का व्यापार, टूटते तटीय क्षेत्रों के समुदाय और समृद्ध चीनी इंडोनेशियाई लोगों की आबादी शामिल है.
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